Friday 23 February 2024

विकसित भारत के लिए युवाओं की भूमिका

आईए हम बात करते है अपने देश भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा करने में यूवाओ की भूमिका पर, विषय पर आगे बढ़ने से पहले हम देश की आर्थिक स्थिति पर थोड़ा नजर डाल लेते है क्या देश की वर्तमान स्थिति ऐसी है की भारत विकसित राष्ट्र बन पाएगा। भारत निश्चित रूप से एक विकसित राष्ट्र बन सकता है क्यों की आज देश में एक मजबूत एवम पूर्ण बहुमत की सरकार है। इसका सबसे बड़ा प्रणाम इस बात से मिलता है कि कोरोना काल के बाद से जहां विश्व के लगभग सभी यूरोपीय, पश्चिमी और एशियन देशों की अर्थव्यव्स्था लगातार नीचे की तरफ जा रही है अमेरिका ब्रिटेन चीन जापान जैसे आर्थिक रूप से मजबूत देशों की सालाना आर्थिक विकास वर्तमान में केवल 2-3 % की दर से आगे बढ़ रही है वही हमारे देश भारत की अर्थव्यवस्था 6-7% की दर से बढ़ रही है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशेषज्ञों का मानना है की आने वाले वर्षो में भारत की अर्थ व्यवस्था लगातार इसी गति से आगे बढ़ती रहेगी। इसके ठीक विपरीत पूरे विश्व में सालाना महंगाई दर जहां 7-8% की दर से बढ़ी है वहीं भारत में मंहगाई दर संतुलित होकर 3-4% पर आ गई है। वर्तमान में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 700 बिलियन डॉलर पहुंच गया है और लगातार तेज गति से प्रति वर्ष वृद्धि कर रहा है। आज भारत, रूस, यूएई, मॉरिशस, श्रीलंका बांग्लादेश, फिजी,कतार, इजरायल, मलेशिया जैसे लगभग 15 महत्वपूर्ण देशों के साथ भारत अपना व्यापार अपनी मुद्रा रूपए में करने की सहमति बना चुका है और कई अन्य देशों से बातचीत का दौर जारी है भारत की प्रगति और मजबूत भविष्य को देखते हुए बहुत सारे देश भारत के साथ रुपए में व्यापार करने के लिए इच्छुक है। 
आज हम आत्मनिर्भर, स्वच्छ और ग्रीन भारत के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे है जिससे देश में लगातार रोज़गार की बढ़ोतरी हो रहीं है हमारा आयात निर्यात सुदृढ़ और संयमित तरीके से आगे बढ़ रहा है देश में स्वास्थ्य सड़क और सुरक्षा सुदृढ़ हो रहा है क्रूड ऑयल के आयात पर निर्भरता कम हो रहा है आज भारत सौर व वायु ऊर्जा का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक देश बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। आज भारत अमेरिका के बाद विश्व का सबसे बड़ा स्टार्टअप वाला देश बन गया है। यही कारण है की आज भारत ब्रिटेन को चौथे स्थान से छठे स्थान पर ढकेलते हुए 4 ट्रिलियन क्षमता के साथ विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बन गया और भारत सरकार नीति आयोग का लक्ष्य है की 2027 तक देश की आर्थिक व्यापारिक क्षमता को छः ट्रिलियन डॉलर के साथ विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनाना है। जिस गति से वर्तमान सरकार कार्य कर रही है यदि यही गति जारी रही तो निःसंदेह आने वाले वर्षो में भारत विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बन जायेगा। 

आईए अब हम समझते है कौन विकसित राष्ट्र है और कौन विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आ सकता है। 
सामान्य तौर पर विकसित राष्ट्र उसे कहते है जिस देश का औद्यौगिक प्रगति उच्च स्तर का हो साथ में तकनीकी व सेवा क्षेत्र भी उन्नति कर रहा हो, प्रति व्यक्ति मासिक आय उच्चतर होने के साथ लोगो का जीवन स्तर बेहतर हो, इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास ऐसा हो की उद्योग और आम जनता के लिए परिवहन व्यवस्था बहुत सुलभ और उच्च स्तर का हो, वित्तीय व्यापारिक लेन देन सुगम सरल हो, स्वास्थ्य और शिक्षा देश के प्रत्येक नागरिक को आसानी से सुलभ हो जिससे देश के नागरिकों की आयु सीमा अधिकतम सुनिश्चित हो सके। 
इस प्रकार यदि विकसित राष्ट्र की परिभाषा को आधार माने तो भारत विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बनते ही ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए विकासशील राष्ट्र की श्रेणी से ऊपर आ चुका है लेकिन विकसित राष्ट्र बनने से अभी बहुत पीछे हैं क्यों कि वर्तमान में देश की जनसंख्या चीन की जनसंख्या को पीछे छोड़ते हुए विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है जो भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी से बाहर कर देता है जब की ब्रिटेन की वार्षिक अर्थव्यवस्था भारत से कम होने बावजूद आज भी विकसित राष्ट्र की श्रेणी में है क्यों की ब्रिटेन के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय 52 हजार डालर है और भारत की जनसंख्या के अनुसार देश का प्रति व्यक्ति आय केवल लगभग 3 हजार डालर है जिसे विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आने के लिए वार्षिक अर्थव्यवस्था वर्तमान 4 ट्रिलियन से पांच गुना अधिक होना चाहिए यानी जब भारत की अर्थव्यवस्था 20 ट्रिलियन से अधिक और प्रति व्यक्ती आय 12000 डॉलर से अधिक हो जायेगा तब भारत विकसित राष्ट्र कहलाएगा और अमरीका को पीछे छोड़ते हुए विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनने के लिए भारत की अर्थव्यवस्था 30 ट्रिलियन डॉलर से अधिक होना चाहिए जो सम्भवतः 2045 तक हासिल किया जा सकता है यदि भारत की विकास गति बिना रुके लगातार वर्तमान गति से चलता रहे। 

अब हम बात करते है युवा भारत देश को कैसे विश्व गुरू बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है आज भारत में 35 वर्ष की आयु की जनसंख्या लगभग 65% है जो भारत को विश्व में सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाला देश बनाता है और देश की आर्थिक प्रगति का एक बड़ा मज़बूत आधार भी आज युवा ही है क्यों कि युवाओं की जनसंख्या अधिक होने से देश में उपभोक्ताओं की संख्या के साथ ही सस्ते कामगारों की उपलब्धता भी बढ़ी है जिसकी वजह से विश्व के लगभग सभी बड़े ब्रांड आईफोन हो या टेस्ला या सिट्रोएन भारत में अपना उत्पादन शुरु कर रहे है। ऐसी सकारात्मक स्थिति में जब पूरा विश्व भारत की तरफ देख रहा है तब तो निश्चित ही भारत के युवाओं को भी भारत को विश्व गुरु बनाने की दिशा में अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। 
भारत विष्व गुरु कैसे बने इस बात को समझने के लिए हम सबको चीन की आर्थिक विकास की नीति को भी समझनी होगी जिसको आधार बनाके आज चीन विश्व की सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद 18 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था और 13000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ विश्व की दूसरी सबसे बड़ी शक्ति बना है। जब हम चीन की आर्थिक प्रगति का गहन अध्यन करते है तो हमें पता चलता है चीन की सरकार ने घर घर गांव गांव उद्योग की स्थापना करके प्रति व्यक्ति आय को 13000 डॉलर तक पहुंचा दिया चीन की इसी नीति को अपनाते हुए भारत सरकार नीति आयोग ने भी आत्मनिर्भर भारत make in India का नारा देते हुए युवाओं को उद्योग स्थापित कर स्व रोजगार को बढ़ावा देने के लिए Startup India Mudra loan, MSME loan जैसी बहुत सी योजनाओं के तहत पीछले 8 सालो में बड़े पैमाने पर लोन दिया है जिसमे युवा उद्योग को प्राथमिकता दिया जा रहा है जिसका परिणाम यह हुआ की आज भारत में प्रति व्यक्ति आय लगभग 3 हजार डॉलर पहुंच गया जो की 2014 में पगभग 1200 डॉलर था।
जब भारत सरकार देश को विश्व की महाशक्ति बनाने की दिशा में प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है ऐसी स्थिति में देश की युवा आबादी को भी अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए सरकार को नीतियों का सहयोगी बनकर Make in India Start-up India योजनाओं को जमीन स्तर लागु करने पर अपनी भूमिका निभानी चाहिए। 

वैसे केवल आर्थिक विकास से ही कोई देश विश्व गुरु नही बन सकता इस लिए भारत जैसे युवा देश में युवाओं की जिम्मेदारी केवल रोज़गार पाने या उद्योग तक ही सीमित नहीं होती है बल्कि युवाओं को भारत का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने के लिए भारत के सामाजिक एवम राजनीतिक विकास,  वैज्ञानिक अन्वेषण एवम तकनीकी विकास, ( SPST - Social Political Scientific Research and Technical Development) में महत्तवपूर्ण भूमिका निभानी होगी.

जब हम सामाजिक विकास की बात करते है तो युवाओं को अपने धर्म, संस्कृति, कला, परंपरा को संरक्षित करने अपनाने पर जोर देना चाहिए और पश्चिमी संस्कृति की जीवन शैली के नाकारात्मक प्रभाव से लोगो को जागरूक करने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी। जातिवाद क्षेत्रवाद की सीमा की सीमा से बाहर निकलकर एक स्वच्छ हरित वातावरण विकसित करना चाहिए जिसमे हम युवा महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है।

राजनीतिक विकास की बात करे तो युवाओं को राजनीतिक कार्यों में सक्रियता निभानी चाहिए जिससे भारत जैसे युवा देश के सदन में पढ़े लिखे ईमानदार छवि के युवा प्रतिनिधि सदन में अधिक संख्या में पहुंच सके यह इस लिए भी जरूरी है की हम सदन से बाहर रहकर भ्रष्टाचार के विषय में केवल चर्चा कर सकते है लेकिन यदि सच में हम भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करना चाहते है और देश को विकसित राष्ट्र बनाना है तो युवाओं को आर्थिक विकास के साथ साथ राजनीतिक हिस्सेदार भी बनाना पड़ेगा अपने गांव समाज के लोगो को अधिक संख्या में जातिवाद क्षेत्रवाद की सीमा से बहार रहकर क्षेत्र व देश के विकास के लिए वोट करने के लिए लोगो को जागरूक करना होगा।

वैज्ञानिक विकाश की बात करे तो हम युवाओं को चंद्रयान, कोरॉना वैक्सीन और नैनो यूरिया जैसी वैज्ञानिक अन्वेषण के विकास में अपनी भागीदारी बढ़ानी चहिए जिससे की देश की जनता को शुद्ध और उच्च गुणवत्ता की खाद्य सामग्री सुलभ हो सके एवम देश के नागरिको की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि सुनिश्चित हो। 

तकनीकी विकास की बात करे तो डिजिटल,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक तकनीकी के विकास में भी युवाओं को अपनी भागीदारी निभानी चाहिए जिससे देश में बैंकिंग सुविधाओ को सरल बनाया जा सके और सामाजिक दूरी कम कर ग्लोबल स्तर पर व्यापारिक गतिविधियों को और गति प्रदान किया जा सके।

इस प्रकार देश के युवा सरकार के साथ स्वयं सेवक बनकर भारत को सांस्कृतिक सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक रूप से एक समृद्ध विकसित राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
 
इस लिए युवा देश के नौजवानों केवल रोजगार पाने की उम्मीद में मत बैठे रहो बल्कि उद्यमी बनो रोजगारों पैदा करो सभी समस्यायों के लिए केवल सरकार को दोष मत दो बल्कि स्वयं से समाधान खोजो और लोगो को समाधान दो। 

जय हिंद जय भारत जय युवा ।। 


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Sunday 31 December 2023

दैनिक दिनचर्या के कार्यकारी नववर्ष 2024 की आप सभी को मंगल शुभकामनाएं।

आज 31 दिसंबर 2023 कार्यकारी संवैधानिक दैनिक दिनचर्या वर्ष का अंतिम दिन है हममें से बहुत सारे लोग आज की रात धूम धड़ाका करने की तैयारी में हैं अच्छी बात है जीवन के हर पल को खुशियों के साथ व्यतीत करना चाहिए।
श्रीमद भगवतगीता में भगवान श्री कृष्ण जी भी यही कहते है दुःख हो या किसी बात की निराशा या हो असफलता या किसी भी प्रकार के हानि से तनाव, हमेशा खुश रहना चाहिए क्यों कि अच्छा बुरा सब कुछ श्री कृष्ण की इच्छा है। 

लेकिन आज 31 दिसंबर के दिन नए वर्ष के स्वागत के साथ बीते दिनों का चिंतन - आत्म समीक्षा भी होना चाहिए की हमारा जाने वाला वर्ष कैसा रहा ? क्या गलतियां हुई हमसे, किसी भी कार्य को पुर्ण करने में कहा कमियां रह गईं ? क्या उपलब्धियां हासिल किया, दूसरो के जीवन उत्थान के लिए क्या करना चाहिए था कितना कर पाए, क्या बाकी रह गया, व्यक्तिगत जीवन में क्या नया सीखा और क्या सिखाना रह गया ? हम अपने विचारो और कार्य व्यवहार से कितने लोगो सकारात्मक तरीके से प्रभावित कर पाए और कल की सुबह से शुरू होने वाले नए वर्ष 2024 में हमें क्या करना है ? 

हममें से बहुत लोगो को 2023 में ऐतिहासिक स्मृतियां और  उपलब्धियां मिली होगी तो कुछ को बहुत निराशा, अपमान, पीड़ा व नुकसान भी झेलना पड़ा होगा। बहुत से लोग सुख के सागर में गोते लगाए होंगे तो कई लोगों ने दु:खों के तूफान भी झेले होंगे। कभी बसंत तो कभी पतझड़ यही जीवन का मर्म है जिसमे कितने ऐसे बदनसीब भी होंगे जिनके लिए 2023 का अंतिम महीना कड़ाके की ठंड में ठिटूरन में गुजर रहा होगा जो अपने परिवारों के साथ रोते बिलखते आज की रात व्यतीत कर रहे होंगे। बहुत से बच्चो ने 2023 में ही भारत की धारा पर जन्म लिया होंगा जिनको कुछ पता ही नही चला होगा की उन्होंने इस धरा पर एक वर्ष व्यतीत कर लिया। वर्ष 2023 का 365 दिन कुछ लोगो के लिए सुरम्य-घाटियों से होकर गुजरा होगा तो कुछ लोगो का ऊबड़-खाबड़ दुर्गम रास्तों से भी गुजारा होगा, पूरे वर्ष सुखद संभावनाओं के साथ दु:खद परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ा। 
इस लिए यदि आज के दिन हम धूम धड़ाका करने के बजाय अपने बीते 364 दिन की समीक्षा करें तो शायद हम बीते दिनों से बहुत कुछ सीखकर आने वाले नए वर्ष को बहुत सुखमय और उपलब्धियों से भरा बना सकेंगे। 

इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपने सम्पर्क में रहे लोगो से बीते 364 दिनों में हुए किसी भी प्रकार की गलत व्यवहार, अपशब्द और अपमान के लिए क्षमा मांगता हूं जिससे किसी की आत्मा को ठेस पहुंचा हो या दुःख महसूस हुआ हो।

इसी के साथ बीते वर्ष 2023 को नमस्कार 
और आगामी नववर्ष 2024 की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं यह नववर्ष भारत धारा पर राम राज्य की स्थापना का वर्ष बने भारत प्रत्येक नागरिक राष्ट्र की अस्मिता और गरिमा को स्वर्णिम बनाने के लिए हर संभव प्रयास करे और प्रत्येक परिवार खुशियों के साथ जीवन यापन करे।।
जय श्री राम 💐💐🙏

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Sunday 15 October 2023

किसी देव स्थान में दर्शन के पश्चात मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ क्षण के लिए ज़रूर बैठे।

हमारी पीढ़ी और पहले की दो तीन पीढ़ियां या हम यह कह सकते है की ६० के दशक से लेकर इक्कीसवीं सदी की शुरूवात तक पिता पुत्र और परिवार के अन्य बड़े बुजुर्गों के बीच संवाद हीनता की वजह से दैनिक जीवन के सनातन संस्कारों को ना तो हमारे बड़े बुजुर्गो या माता पिता ने अपने बच्चो को बताया, न ही हमे देखने सुनने को मिला जिसका सबसे बड़ा कारण हजारों वर्षों के विदेशी सत्ता से आजादी के बाद भारतीय समाज इतना भ्रमित हों चुका था की अपनी वास्त्विक पहचान और संस्कृति भूलकर, मिश्रित संस्कार और संस्कृति के साथ आगे बढ़ रहा था, भारत की मूल वैदिक शिक्षा तहस नहस हो चुकी थी जिसकी वजह से आजादी के बाद खासतौर पर ६० के दशक के बाद की पीढ़ी की परवरिश बहुत ही संकीर्ण व संयमित माहौल में हुआ, परिणाम यह हुआ की इस दौर में जन्म लेने वाले बच्चे कभी ऐसे प्रश्नों का किसी से संकोच वश जवाब ही नहीं  पूछ पाए। इस दौर में बच्चों का आपने समाज के बड़े बुजुर्गो से ज्यादा सवाल जवाब करना भी अच्छा नहीं माना जाता था जो बच्चे ज्यादा सवाल जवाब करते लोग ऐसे बच्चों को संस्कारहीन बताने लगते और ऐसा अक्सर ऐसे ही बुजुर्ग किया करते जिन्हे बच्चों के गुढ़ प्रश्नों का उत्तर नहीं पता होता। 

ऐसे बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर मेरे पीढ़ी और बाद की पीढ़ी के लोगो को भी नही पता क्यों कि कभी सुना पढ़ा जाना ही नहीं। ऐसा इस लिए की हमारे समाज में लोगो का मानना है बच्चों का स्कूल में अच्छा मार्क्स जरुर आना चाहिए भले ही वह खेल या अन्य विषय में रुचि ना ले, दुर्भाग्य वश लोगो को यह नही समझ था कि खेल प्रतियोगिता में भाग ना लेने से बच्चा शारिरिक रूप से कमजोर होता है बच्चे का मानसिक विकास भी धीमी गति से होता है। मेरा मानना है कि ऐसे माहौल के पीछे एक बहुत प्रचलित लोककोक्ति का प्रभाव भी रहा है अक्सर घर के मुखिया या माता पिता को हम सबने अपने बच्चों को यह कहते सुना है कि"पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब" कुछ हद तक यह लोककोक्ती तो सही है लेकिन लोग यह नहीं समझ पाते की जीवन के हर पड़ाव पर संतुलन होना बहुत जरुरी होता है। यानी कि बच्चे का सर्वांगीण विकास जरुरी होता है ना कि केवल स्कूल में अच्छे मार्क्स आना।

भारतीय सनातन समाज मोदी जी का ऋणी है जो उन्होंने सूचना तकनीकी तंत्र को गाँव गांव तक पहुंचकर डिजिटल शिक्षा के माध्यम से लोगो को इतना जागरुक करने का कार्य किया की आज डिजिटल और सोशल मीडिया के माध्यम से भारतीय संस्कृति और सभ्यता के गुढ़ विषयों के बारे में जन जन तक जानकारी पहुंच रहीं है जिससे वर्तमान व आने वाली पीढ़ी ऐसी जानकारियों से अनभिज्ञ नही रहेगी और हमारी भारतीय संस्कृति जड़ मजबूत होगी।  भारतीय संस्कृति में देव स्थान दर्शन से सम्बन्धित एक महत्त्वपूर्ण जानकारी यह है कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या चौखट पर थोड़ी देर ज़रूर बैठे।
क्या आप जानते हैं इस परंपरा के पीछे का गुढ़ रहस्य क्या है ?

आइए जानते है वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ करके हमें एक श्लोक को क्यों पढ़ना चाहिये और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी यह क्यों बताना चाहिये....

अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है-

अनायासेन मरणम्... 
अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं !!

बिना देन्येन जीवनम्... 
अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े, जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो, ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके !!

देहांते तव सानिध्यम.. 
अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो, जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए, उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले !!

देहि में परमेशवरम्...
हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना !!
यह प्रार्थना करें।

गाड़ी, घर, धन, नौकरी,लड़का, लड़की, अच्छा पति-पत्नी, यह मांगना नहीं पड़ता है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं इसीलिए जब भी कभी कही भी देव स्थान पर दर्शन करने जाए तो उपरोक्त श्लोक के अनुसार भाव लेकर जाए और मंदिर में दर्शन के बाद कुछ समय मंदिर की पैड़ी पर बैठकर उपरोक्त भाव की प्रार्थना करिएगा।

उपरोक्त श्लोक प्रार्थना है, याचना नहीं।
क्यों कि याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।
प्रार्थना का अर्थ विशिष्ट, श्रेष्ठ निवेदन से है न कि याचना से अर्थार्थ जब भी किसी शक्ति पीठ या देव स्थान पर जाए तो प्रभु से प्रार्थना करें ना की याचना सबसे श्रेष्ठ प्रार्थना यही होगा की ऊपर लिखित श्लोक को मन ही मन दोहराएं। 

लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आजकल लोग यदि मंदिर की पैड़ी पर बैठते भी है तो वहा भी अपने घर, व्यापार व राजनीति की चर्चा करते हैं और केवल अपना थकान मिटाने के लिए ही बैठते है परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई। को बार बार दोहराना। 

सब से जरूरी बात... जब भी मंदिर में दर्शन करने जाए तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए, उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं, आंखें बंद क्यों करना हम तो भगवान का दर्शन करने जाते हैं, तो भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें। आंखों में उस मोहक दृश्य भर ले भगवान के उस स्वरूप को और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें। जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें, नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें, यहीं शास्त्र और बड़े बुजुर्गो का कहना हैं ...

जय माता दी 💐🙏

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Friday 5 May 2023

एक राजा जिसने बोधिसत्व प्राप्त कर स्वयं को चिरंजीव बना लिया।

हम सब बचपन से देखते आए है महात्मा गौतम बुद्ध की तस्वीरे और स्टैच्यू सर्वत्र विश्व में शांति और ध्यान की मुद्रा में ही उपलब्ध है। जो हमे यह सन्देश देती है की ज्ञान और ध्यान से ही जीवन में शांति व सद्भावना सम्भव है जहा इसकी कमी है वहा अशांति ही अशांति है। इस लिए ज्ञानार्जन और ध्यान का निरंतर अभ्यास जीवन में बहुत आवश्यक है। 
भारतीय पंचांग के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन नेपाल के लुम्बिनी क्षेत्र में ५६३ ईशा पूर्व में भगवान श्री राम के पुत्र कुश के कुल में कपिलवस्तु के महाराजा शुद्धोदन की धर्मपत्नी महारानी महामाया देवी के पुत्र के रूप में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था जिनको उनके जन्म से लेकर सन्यास धारण करने से पहले तक सिद्धार्थ के नाम से जाना जाता था आगे चलकर इन्हें गौतम बुद्ध के नाम से पहचान मिली। बुद्ध के जन्म, बोध और निर्वाण के संदर्भ एक महत्त्वपूर्ण संयोग यह है कि वैशाख पूर्णिमा के ही दिन ३५ वर्ष की आयु में ५२८ ईशा पूर्व मे बोध गया बिहार में वटवृक्ष के नीचे आपको आत्मज्ञान प्राप्त हुआ जो वटवृक्ष आज भी बोधगया में मौजूद है और इसी दिन ४८३ ईशा पूर्व ८० वर्ष की आयु में कुशीनगर उत्तर प्रदेश में महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था। 
देह छोड़ने के पूर्व बुद्ध के अंतिम वचन थे 
'अप्प दिपो भव:...सम्मासती। 
अपने दीये खुद बनो...स्मरण रखो कि तुम भी एक बुद्ध हो।
आज के दिन का दैवीय महत्व है क्यों कि इसी दिन देवी छिन्नमस्तिका और श्री हरि विष्णु ने कूर्म अवतार लिया था। आज के ही दिन ब्रह्मदेव ने काले और सफ़ेद तिलों का निर्माण भी किया था इसी लिए आज के दिन तिलों का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।

गौतम बुद्ध शाक्यवंशी छत्रिय थे। शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का सोलह वर्ष की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। यशोधरा से उनको एक पुत्र मिला जिसका नाम राहुल रखा गया। बाद में यशोधरा और राहुल दोनों बुद्ध के भिक्षु हो गए थे। बुद्ध का लालन पालन उनकी मौसी गौतमी किया क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था। बुद्ध के जन्म के बाद एक भविष्यवक्ता ने राजा शुद्धोदन से कहा था कि यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा लेकिन यदि वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया तो इसे महात्मा सन्यासी होने से कोई नहीं रोक सकता और इसकी ख्‍याति समूचे संसार में अनंतकाल तक कायम रहेगी। राजा शुद्धोदन सिद्धार्थ को चक्रवर्ती सम्राट बनते देखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने सिद्धार्थ के आस-पास भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया ताकि किसी भी प्रकार से वैराग्य उत्पन्न न हो लेकिन राजा शुद्धोदन की यही गलती सिद्धार्थ के मन में वैराग्य उत्पन्न कर दिया। वैराग्य भाव उत्पन्न होने के बाद एक बार सिद्धार्थ शाक्यों के संघ में सम्मलित होने गए। जहां उनका संघ के गुरुवों से विचारिक मतभेद हो गया। क्षत्रिय शाक्य संघ से वैचारिक मतभेद के चलते संघ ने उनके समक्ष दो प्रस्ताव रखे थे या तो वे फांसी पर चढ़ जाए या देश छोड़कर चले जाए। सिद्धार्थ ने कहा कि जो भी दंड उन्हें मिले स्वीकार है लेकिन शाक्यों के सेनापति ने सोचा कि दोनों ही स्थिति में कौशल नरेश को सिद्धार्थ से हुए विवाद का पता चल जाएगा और उन्हें दंड भुगतना होगा तब सिद्धार्थ ने कहा कि आप निश्चिंत रहें मैं संन्यास लेकिन चुपचाप ही देश से दूर चला जाऊंगा आपकी इच्छा भी पूरी होगी और मेरी भी आधी रात को सिद्धार्थ अपना महल त्यागकर 30 योजन दूर गोरखपुर के पास अमोना नदी के तट पर जा पहुंचे। वहां उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारे और केश काटकर खुद को संन्यस्त कर लिया। उस वक्त उनकी आयु 29 वर्ष थी। छः वर्षो की कठिन तपस्या के पश्चात् सिद्धार्थ को बोधिसत्व 528 वर्ष पूर्व 35 वर्ष की आयु में बिहार प्रदेश के बोधगया में वटवृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ था जो आज भी विद्यमान है जिसे अब बोधीवृक्ष कहा जाता है। सम्राट अशोक इस वृक्ष की एक शाखा श्रीलंका ले जाकर स्थापित किया यह शाखा भी आज मौजूद है।

श्रीमद्भागवत महापुराण और विष्णुपुराण में भी शाक्यों की वंशावली के बारे में उल्लेख पढ़ने को मिलता है। कहते हैं कि राम के 2 पुत्रों लव और कुश में से कुश का वंश ही आगे चल पाया। कुश के वंश में ही आगे चलकर शल्य हुए, जो कि कुश की 50वीं पीढ़ी में महाभारत काल में उपस्थित थे। इन्हीं शल्य की लगभग 25वीं पीढ़ी में ही गौतम बुद्ध हुए थे। शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अंतरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन और फिर सिद्धार्थ हुए, जो आगे चलकर गौतम बुद्ध कहलाए। इन्हीं सिद्धार्थ के पुत्र राहुल थे। राहुल के बाद प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। 

बुद्ध के प्रमुख गुरु गुरु विश्वामित्र, अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त थे जबकि बुद्ध के प्रमुख दस शिष्य- आनंद, अनिरुद्ध (अनुरुद्धा), महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, और उपाली (नाई) थे और बौद्ध धर्म के प्रचारकों में प्रमुख रूप से अंगुलिमाल, मिलिंद (यूनानी सम्राट), सम्राट अशोक, ह्वेन त्सांग, फा श्येन, ई जिंग, हे चो, बोधिसत्व या बोधिधर्मा, विमल मित्र, वैंदा (स्त्री), उपगुप्त (अशोक के गुरु), वज्रबोधि, अश्वघोष, नागार्जुन, चंद्रकीर्ति, मैत्रेयनाथ, आर्य असंग, वसुबंधु, स्थिरमति, दिग्नाग, धर्मकीर्ति, शांतरक्षित, कमलशील, सौत्रांत्रिक, आम्रपाली, संघमित्रा आदि का नाम लिया जाता है।
बुद्ध के धर्म प्रचार से उनके भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी तो भिक्षुओं के आग्रह पर बौद्ध संघ की स्थापना की गई। बौद्ध संघ में बुद्ध ने स्त्रियों को भी लेने की अनुमति दे दी। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति सम्पन्न हुआ था जिसमे संघ के दो हिस्से हो गए थे हीनयान और महायान। सम्राट अशोक ने तृतीय बौद्घ संगती का आयोजन 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में कराया था उसके बाद भी सभी भिक्षुओं को एक ही तरह के बौद्ध संघ के अंतर्गत रखे जाने के बहुत प्रयास किए गए किंतु देश और काल के अनुसार इनमें बदलाव को रोक पाना सम्भव नहीं हो पाया।

गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में लोगो को शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए व्यक्तिव में संतुलन की धारणा को मजबूत बनाए रखने पर बहुत बल दिया और कहा की मनुष्यों को भोग की अति से बचना जितना आवश्यक है उतना ही योग की अति अर्थात तपस्या की अति से भी बचना जरूरी है क्यों कि भोग की अति से चेतना का बिखराव हो जाता है विवेक लुप्त और संस्कार सुप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप व्यक्ति के दिल-दिमाग की पर विनाश का पहरा मदराने लगता है ठीक इसी प्रकार तपस्या की अति से देह दुर्बल और मनोबल कमजोर हो जाता है परिणामस्वरूप आत्मज्ञान की प्राप्ति संभव नही हो पाती है क्योंकि कमजोर और मूर्च्छित मनोबल के आधार पर आत्मज्ञान प्राप्त करना वैसा ही है जैसा कि रेत की बुनियाद पर भव्य भवन निर्माण करने का स्वप्न संजोना।

गौतम बुद्ध का कहना है कि चार आर्य सत्य हैं 
पहला यह कि दुःख है। 
दूसरा यह कि दुःख का कारण है। 
तीसरा यह कि दुःख का निदान है। 
चौथा यह कि वह मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है।

गौतम बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्ग ही वह मध्यम मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है। अष्टांगिक मार्ग चूंकि ज्ञान, संकल्प, वचन, कर्मांत, आजीव, व्यायाम, स्मृति और समाधि के संदर्भ में सम्यकता से साक्षात्कार कराता है, अतः मध्यम मार्ग है। मध्यम मार्ग ज्ञान देने वाला है, शांति देने वाला है, निर्वाण देने वाला है अतः कल्याणकारी है और जो कल्याणकारी है वही श्रेष्ठ जीवन के लिए श्रेयस्कर है।

गौतम बुद्ध विश्वकल्याण के लिए मैत्री भावना पर बल देते हैं। ठीक वैसे ही जैसे महावीर स्वामी ने मित्रता के प्रसार की बात कही थी। गौतम बुद्ध मानते हैं कि मैत्री की महक से ही संसार में सद्भाव का सौरभ फैल सकता है। वे कहते हैं कि बैर से बैर कभी नहीं मिटता यह केवल मैत्री से ही बैर मिटता सकता है।

शोध बताते हैं कि दुनिया में सर्वाधिक प्रवचन बुद्ध के ही रहे हैं। यह रिकॉर्ड है कि बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना किसी और ने नहीं। सैकड़ों ग्रंथ है जो उनके प्रवचनों से भरे पड़े हैं और आश्चर्य यह कि उनमें कहीं भी दोहराव नहीं है। 35 की उम्र के बाद बुद्ध ने जीवन के प्रत्येक विषय और धर्म के प्रत्येक रहस्य पर जो ‍कुछ भी कहा वह त्रिपिटक में संकलित है। त्रिपिटक अर्थात तीन पिटक- विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक। सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय के एक अंश धम्मपद को पढ़ने का ज्यादा प्रचलन है। इसके अलावा बौद्ध अनेक जातक कथाएं विश्व प्रसिद्ध हैं। जिनके आधार पर ही ईशा की कथाएं निर्मित हुई। यही कारण है कि पश्चिम के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक बुद्ध और योग को पिछले कुछ वर्षों से बहुत ही गंभीरता से ले रहे हैं। चीन, जापान, श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अनेक बौद्ध राष्ट्रों के बौद्ध मठों में पश्चिमी देशों के लोगो की तादाद बढ़ी है। सभी अब यह जानने लगे हैं कि पश्चिमी धर्मों में जो बाते हैं वे बौद्ध धर्म से ही ली गई है क्योंकि बौद्ध धर्म, ईसा मसीह से 500 साल पूर्व पूरे विश्व में फैल चुका था। दुनिया का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा था जहां बौद्ध भिक्षुओं के कदम न पड़े हों। दुनिया के हर इलाके में खुदाई में भगवान बुद्ध की प्रतिमा निकलती है। दुनिया की सर्वाधिक प्रतिमाओं का रिकॉर्ड भी बुद्ध के नाम दर्ज है। बुत परस्ती शब्द की उत्पत्ति ही बुद्ध शब्द से हुई है। बुद्ध के ध्‍यान और ज्ञान पर बहुत से राष्ट्रों में आज भी शोध जारी है।
ऐसा प्रमाण मिलता है कि भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं के आग्रह पर उन्हें वचन दिया था कि मैं 'मैत्रेय' से पुन: जन्म लूंगा। तब से अब तक 2500 साल से अधिक समय बीत गया। कहते हैं कि बुद्ध ने इस बीच कई बार जन्म लेने का प्रयास किया लेकिन कुछ कारण ऐसे बने कि वे जन्म नहीं ले पाए। थियोसॉफिकल सोसाइटी ने जे. कृष्णमूर्ति के भीतर उन्हें अवतरित होने के लिए सारे इंतजाम किए लेकिन वह प्रयास भी असफल सि‍द्ध हुआ। अंतत: ओशो रजनीश ने उन्हें अपने शरीर में अवतरित होने की अनुमति दे दी थी। उस दौरान जोरबा दी बुद्धा नाम से प्रवचन माला ओशो के कहीं। 


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Tuesday 25 April 2023

अक्षय तृतीया सनातन संस्कृति की श्रेष्ठ तिथियों में से एक सर्वश्रेष्ठ तिथि है

चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को त्रेता और द्वापर युग का संधि काल कहा जाता है मान्यता है कि आज के दिन किए गए सभी शुभ कर्मों का अक्षय फल प्राप्त होता है इसी लिए इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय का मतलब है जिसका कभी क्षय (नाश) न हो, अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ आज के दिन किया जा सकता है.... आज के दिन शुरु किया गया कार्य हर प्रकार से सफलता देने वाला होता है। 

आज के ही दिन ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र के रूप में श्री हरि विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम ने पृथ्वी पर अवतरण लिया था। श्री परशुराम भगवान देवधिदेव महादेव के परम भक्त थे और उनकी निरंतर साधना किया करते थे जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हे अपना परशु शस्त्र प्रदान किया था। परशुराम भगवान शस्त्र और शास्त्र से युक्त पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ पुरुषों में से एक है जिन्होंने अकेले स्व पुरुषार्थ के बल से २१ बार पृथ्वी पर व्याप्त कुरीतियों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोगो को विनष्ट कर दिया था।
महायोद्धा भीष्म पितामह, सूर्यपुत्र कर्ण और गुरू द्रोणाचार्य को दीक्षा भगवान परशुराम ने ही प्रदान किया था। प्रभु श्री राम को पिनाक धनुष और श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र श्री परशुराम ने ही दिया था। 
पृथ्वी पर आज भी विचरण करने वाले आठ दिव्य आत्माओं में से एक भगवान परशुराम जी चिरंजीवी है और आज भी महेंद्र पर्वत पर विचरण करते है। अन्य सात चिरंजीवी आत्माओं में श्री हनुमान जी पवनपुत्र के रूप में सर्वत्र विराजमान हैं, ऋषि वेदव्यास, गुरु कृपाचार्य, रामभक्त विभीषण, किष्किंधा के राजा बलि और द्रोणाचार्य पुत्र अस्वथामा है जिनके बारे में मान्यता है कि अस्वथमा मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से २० किलोमीटर दूर असीरगढ़ किला में स्थित शिव मंदिर में आज भी ब्रह्म मुहूर्थ में पूजा करने आते है। ऋषि मार्कण्डेय पृथ्वी पर आठवें चिरंजीवी आत्मा है जिन्होंने महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध कर लिया है जिससे इन्हे अमरत्व प्राप्त हो गया है। 
आज के ही दिन पृथ्वी पर नर नारायण और ब्रह्मा विष्णु  अवतरित हुए थे। मां गंगा का भी आज के ही दिन भगवान विष्णु के चरणों से पृथ्वी पर आगमन हुआ था। 
ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय भी आज के ही दिन जन्म लिए। 
सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की शुरुवात भी आज के ही दिन से हुआ था। 
माँ अन्नपूर्णा का जन्म और देवताओं के कोषाध्यक्ष श्री कुबेर भगवान को खजाना आज ही मिला था।

सूर्य भगवान ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया और कनकधारा स्तोत्र की रचना भी श्री आदि शंकराचार्य ने आज के ही दिन किया था।

वेदव्यास जी ने महाकाव्य महाभारत की रचना गणेश जी के साथ शुरू किया था और महाभारत का युद्ध भी आज ही समाप्त हुआ था।

प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने का कठीन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया था।

प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण धाम का कपाट भी आज के ही दिन खोले जाते है और वृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण चरण के दर्शन  वर्ष में केवल एक बार चैत्र शुक्ल तृतीया को होते है।

भगवान जगन्नाथ के सभी रथों को बनाना भी आज के दिन प्रारम्भ किया जाता है।

इस प्रकार अक्षय तृतीया की तिथि सनातन संस्कृति सभ्यता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

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Friday 14 April 2023

विवाह कार्यक्रम जीवन का एक श्रेष्ठ संस्कार है इसे आधुनिकता के प्रपंच में न बांधे।

"विवाह" मानव जीवन का एक पवित्र बंधन है जो ब्रह्मांड की दिव्य वातावरण में उपस्थिति ईश्वरीय शक्तियों, दिव्य आत्माओं, पितृ को साक्षी मानकर उनका आवाहन करके अग्नि के समक्ष सात फेरों या ये कहे की दो जागृत आत्माएं स्त्री व पुरुष एक दूसरे के सात वचनों से सहमति होकर संसार के रचनात्मक कार्यों में अपनी भुमिका अदा करने के उद्देश्य से नव जीवन की शुरुआत करते है। इस प्रकार विवाह कार्यक्रम प्रकृति द्वारा निर्धारित पृथ्वी पर एक सर्वश्रेठ दैविक आयोजन है जिसे मर्यादाओं मे रहकर ही संपन्न करना कराना  चाहिए जिससे हमारी सनातन संस्कृति सभ्यता का आधार और मजबूत हो न कि दूषित हो। इसलिए आधुनिक व्यवस्था के बढ़ते प्रचालन व दिखावे से हम सभी को बचाना चहिए।

अभी हाल ही में इसका एक बढ़िया उदाहरण राजस्थान के जयपुर शहर से प्राप्त हुआ जहां वर पक्ष के तरफ से लड़के ने बधू पक्ष के समक्ष कुछ शर्तें रखी जिसे सुनकर लोग आश्चर्यचकित हुए कि आज के आधुनिक व्यवस्था में जहां लड़के लड़की व उनके परिवार की तरफ से लग्जरी गाड़ियों, फाइव स्टार वेन्यू, ड्रोन कैमरों  प्री वेडिंग सूट,  रिवॉल्विंग स्टेज पर जयमाल कार्यक्रम और हेलीकॉप्टर से रोज लीव्स के बरसात कराने के शर्ते रखी जाती है। ऐसे में लड़के ने सनातन वैदिक व्यवस्था के तहत विवाह संपन्न कराने का शर्त रख दिया। विवाह पूर्व लड़के ने लड़की वाले से हैरान करने वाली अनोखी मांगे रखी जो देशभर चर्चा का विषय बना है। मजेदार बात यह है कि मांगें दहेज को लेकर नहीं बल्कि विवाह संपन्न कराने के तरीके और अनुचित परंपराओं के बढ़ते प्रचलन को लेकर हैं। लड़के ने मांग किया प्री

प्री वैडिंग शूट में वो नहीं शामिल होगा यानी उसे प्रेम का फिल्मों की तर्ज पर मजाक नहीं उड़ना क्यों कि प्रेम दो जीव आत्माओं के बीच का बहुत ही शुद्ध भाव है जिसे प्री वेडिंग शूट के माध्यम से दूषित करना अनुचित है।दु

ल्हन शादी में लहंगे की बजाय पारंपरिक पीले, लाल या गुलाबी रंग की साड़ी पहने !

मैरिज समारोह स्थल पर ऊलजुलूल, अश्लील, कानफोड़ू संगीत की बजाय केवल हल्का इंस्ट्रूमेंटल संगीत ही बजे !
वरमाला के समय केवल दूल्हा दुल्हन ही स्टेज पर रहें  !
वरमाला के समय दूल्हे या दुल्हन को.. उठाकर उचकाने वालों को विवाह कार्यक्रम से दूर रखा जाए !
जब पंडितजी द्वारा विवाह प्रक्रिया शुरू कर दिया जाए और  उनका वैदिक मंत्रोचार व विवाह विधि सही है तो उन्हें कोई बीच में रोक टोक नही !
कैमरामैन फेरों आदि के चित्र दूर से ले न कि बार बार पंडितजी को टोक कर.. विवाह विधि में व्यवधान उत्पन्न करे क्यों कि विवाह कार्यक्रम देवताओं का आह्वान करके उनके साक्ष्य में किया जाने वाला समारोह है.. ना की किसी फिल्म की शूटिंग !
दूल्हा दुल्हन द्वारा कैमरामैन के कहने पर उल्टे सीधे पोज नहीं बनाये जायेंगे क्यों कि बधु किसी के परिवार की इज्जत उसकी पैमाइश लोगो की भीड़ के समक्ष कराने की जरुरत नही !
विवाह समारोह दिन में हो और शाम तक विदाई संपन्न हो जाए जिससे किसी भी मेहमान को रात 12 से 1 बजे खाना खाने से होने वाली समस्या जैसे अनिद्रा, एसिडिटी आदि से परेशान ना होना पड़े और मेहमानों को अपने घर पहुंचने में कोई असुविधा ना हो !
नवविवाहित को लोगो के समक्ष.. आलिंगन करने, डांस करने व एक दूसरे को खाना खिलाने के लिए ना कहा जाए !
विवाह कार्यक्रम में भोजन व्यवस्था में किसी प्रकार का मांस मदिरा वर्जित होगा क्यों कि विवाह में देवी देवताओं का आवाह्न किया जाता है मांस मदिरा देखकर देवी देवता रूष्ट होकर  दूल्हा दुल्हन को बिना आशीर्वाद दिए चले जाते हैं !

अच्छी खबर यह है की लड़की वालों ने लड़के की सभी मांगे मानते हुए सनातन संस्कृति सभ्यता को मजबूती प्रदान करने के लिए  सहर्ष तैयार हो गए और विवाह समारोह वैदिक परंपरा से संपन्न हुआ..!

सनातन धर्म की जय हो।
#SayNoForDowry #NADA
Dowry is will It can't be demand 

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